लम्हे मोह्हबत के सारे हाथ से फिसल गए;.....ghazal,

लम्हे मोह्हबत के सारे हाथ से फिसल गए;
लम्हे मोह्हबत के सारे हाथ से फिसल गए;


जिनको भी दिल मैं बसाया आँखों से बह गए लम्हे मोह्हबत के सारे हाथ से फिसल गए;
किस्मत अक्सर  इम्तेहान लेती रही मंजिल तक पहुंच न पाए राह बदल गए;
दिन युही गुजरते गए उसके इंतज़ार मैं तन्हाई  आग़ोश मैं वो लम्हे निकल गए;
एक एक पल गुजरना सदियों सा लगा दिल ऐ फिगर के दिन युही निकल गए;
शब् ऐ फ़िराक मैं एसा ज़ख़्म दिया उसने क़तल हुए सारे अरमान मिटी मैं मिल गए;

लोग मार देते है  सच से किया वास्ता इनका शराफत दिखा आकर हमे बदनाम कर गए;
कदमो तले रोंदा उन साड़ी उमीदो को लगा कर मोल इश्क़ का नीलाम कर गए;

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ