ये दरिया निगाहो का अक्सर नहीं मिलता |
ये दरिया निगाहो का अक्सर नहीं मिलता, मैं वो भवरा हूँ जो एक फूल पर नहीं मिलता;
घनघोर रातो को लिखते है तुम्हे सोचकर; कहना बोहत है जुबान को अलफ़ाज़ नहीं मिलता;
फिज़ाओ मैं बहारे तो आती ही रहती है ,जो फूल टूट जाए दुबारा नहीं मिलता;
ये दस्तूर है ज़िदगी मैं वफ़ा न मिले, ज़ख्म देने वाले बोहत मरहम नहीं मिलता;
राह ऐ मंजिल मैं वो आये तो रोक लेना, जो पीछे रह जाये दुबारा नहीं मिलता;
अपनों से दुरी हो ये खुदा न करे जीत ,राहगार बोहत मिलते है हमसफ़र नहीं मिलता;
दर्दो की दवा न बनी है ज़ंमाने मैं ,हाल इ दिल कहे सुनने को कोई मिलता;
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