मोहोबत करने का किया खूब सिला पाया |
मोहोबत करने का किया खूब सिला पाया खुवाइशे पूरी करते उसकी अपना सब गवाया;
राह ऐ मंजिल पर चलते रहे दीदार को उसके इतना दूर निकल आया घर पीछे छोड़ आया;
रीत है ज़माने की ठोकर मरती दिलवालो को जिसने है दिल लगाया उसने है धोखा खाया;
उसकी याद आयी तो दिल मैं सवाल उठा शिकवे कोई न थे फिर भी उसने भूलाया;
क़फ़स ऐ तन्हाई मैं ज़िन्दगी फस गयी रातो को अक्सर याद मैं आंसू बहाया ;
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