मेरा मसाफ़त ही मेरी अज़ाब रहा

                                   मेरा मसाफ़त ही मेरी अज़ाब रहा 




मेरा मसाफ़त ही मेरी अज़ाब रहा सवालों मैं घिरी किताब रहा;
ढूंढ़ते रहे नक़्श ऐ पा उसके पर सबा से निशाँ मिटता रहा;
हसरत ऐ परवाज़ सदा दिल मैं रही एक एक कर हर सपना टूटता रहा;
बदा के रिन्द मैं एसे दुबे बैठे है यु दिल ऐ आशियाना लूटता रहा;
उसके लौट आने की तवाकु है दिन बा दिन यही गुजरता गया;
उसकी याद मैं ये दिल तड़पकर क़फ़स ऐ तन्हाई मैं बिखरता रहा;
उसके इंतज़ार मैं गुजरी ज़िन्दगी जीत वो बज़्म ऐ अहल ऐ हुनर उजड़ता रहा;