मेरा मसाफ़त ही मेरी अज़ाब रहा सवालों मैं घिरी किताब रहा; ढूंढ़ते रहे नक़्श ऐ पा उसके पर सबा से निशाँ मिटता रहा; हसरत ऐ परवाज़ सदा दिल मैं रही एक एक कर हर सपना टूटता रहा; बदा के रिन्द मैं एसे दुबे बैठे है यु दिल ऐ आशियाना लूटता रहा; उसके लौट आने की तवाकु है दिन बा दिन यही गुजरता गया; उसकी याद मैं ये दिल तड़पकर क़फ़स ऐ तन्हाई मैं बिखरता रहा; उसके इंतज़ार मैं गुजरी ज़िन्दगी जीत वो बज़्म ऐ अहल ऐ हुनर उजड़ता रहा;
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