किस्मत बेईमान थी मंजिल अनजान थी ज़माने के बिच शख्सियत गुमनाम थी;
कैसे समझ पाते हाल ऐ दिल उसका ज़िन्दगी तो बस दो पल की मेहमान थी;
खुद को न पहचान पाता हूँ आईने मैं भूल चुके है किया मेरी पहचान थी;
दरवाजो के परदे  करके रो लेते है मोह्हबत मैं ज़ीस्त हुई बदनाम थी;
ज़ख्मो को सिलते रहे कुछ कह न पाए जीत अब तो लगा जैसे हस्ती हुई शमशान थी;