नाशाद हुई ज़ीस्त को कैसे संभालते ,,,ghazal

नाशाद हुई ज़ीस्त को कैसे संभालते
नाशाद हुई ज़ीस्त को कैसे संभालते


न दौलत की प्यास न शोहरत की प्यास थी तनहा सफर  हमसफ़र की आस थी;
नाशाद हुई ज़ीस्त को कैसे संभालते मेरी ज़िन्दगी के हर पहलु मैं ख़ास थी;
हसरत ऐ परवाज़ लिए गयी दयार ऐ गैर वो बाद उसके क़फ़स ऐ तन्हाई मैं याद पास थी;
अज़ाब मिली थी इश्क़ मैं तड़पते रह गए उसके बिना ज़िन्दगी न आयी रास थी;
लौट कर आ जाते देख लो किया हुए हाल तेरे इंतज़ार मैं बची आखरी साँसे थी;
छलनी छलनी किया मेरे जिस्म को जीत यु सरे अरमानो की जल रही लाश थी;

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