कियो आलम ऐ तनाही थी .........ghazal,

कियो आलम ऐ तनाही थी
कियो आलम ऐ तनाही थी 


कियो आलम ऐ तनाही थी बे रूखी लौट आयी थी;
क़फ़स ऐ मोह्हबत मैं फसके मेरी जान निकल आयी थी;
 वो सनम हरजाई निकलाजिसने मेरी रूह मिटाई थी;
 दिन महीने साल गुजर गए वो लौट के न आयी थी;
 अहल ऐ जहां  रोया बोहोत दास्तान ऐ मोह्हबत सुनाई थी;
ज़ख़्म इतने लगे मेरे दिल पे मोह्हबत अब रोग बन आयी थी;
अरमान था दीदार ऐ यार का आखरी घडी जब क़रीब आयी थी;
इश्क़ करना गुनाह हो गया जीत लोगो ने अक्सर बात समझाई थी;

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