किसी से नहीं हम खुदसे खफा है




किसी से नहीं हम खुदसे खफा है गमो का हमपर यु छाया नशा है;
मआल ऐ उम्र ऐ मुहोब्बत किया खूब लिखा है ताबासूम का खुवाब लबो से जुड़ा है;
अफसाना ऐ हस्ती की ही खीराम थी जो आज कल दिल तोडना जुआ है;
लाख कांटे बिछाये मेरे ज़र ऐ पा हाथ फैलाये मांगी तेरी ख़ुशी की दुआ है;
रब अपना आशियाना कहा बनाये यहाँ तो आदम ही बना खुदा है
तड़पता रहा जीत बा वक़्त ऐ मर्ग                                                                                                             कफ ऐ ख़ाक हुए की उसने दगा है;



कफ ऐ ख़ाक-------मुठी भर धुल
बा वक़्त ऐ मर्ग-------मौत के वक़्त मैं
ज़र ऐ पा-------क़दमों के निशाँ
अफसाना ऐ हस्ती-------ज़िन्दगी की कहानी
खीराम--------चाल
मआल ऐ उम्र ऐ मुहोबत--------इश्क़ का अंत
ताबासूम------मुस्कान 

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